Site icon Saavan

देख रहा दर्पण मनुज

देख रहा दर्पण मनुज
करने निज पहचान,
बाहर तो सब दिख गया
भीतर से अंजान।
भीतर से अंजान,
खिली लालिमा देख कर
मुस्काया मन ही मन
देखा जब सुन्दर तन।
कहे सतीश बाहर
भीतर रह तू एक,
आंख बंद कर निज
अंतस के भीतर देख।

Exit mobile version