दोस्त, दुश्मन तमाम रखता हूं
मैं हथेली पे जान रखता हूं।
शाम तक जाम क्यूं उदास रहे
मैं तो अपनी ही शाम रखता हूं।
कफन खरीद के है रखा हुआ
आखिरी इन्तजाम रखता हूं।
जब भी चाहे उजाड़ देना मुझे
मैं जरा सा सामान रखता हूं।
मैं किसी काम का नहीं क्यूंकि
काम से अपने काम रखता हूं।
मुझे तो इसलिये बदनाम किया
मैं शहर में जो नाम रखता हूं।
……….सतीश कसेरा