Site icon Saavan

धरा पर किसका ये बसेरा है ??

धरा पर किसका ये बसेरा है
नीर गिरता है ये नया सवेरा है
अश्क से धुल ​गए हैं जख्म अब तो
चहुँ ओर छाया कैसा अंधेरा है ?
लब को लब नहीं कहा जाता
दर्द अब और नहीं सहा जाता।
बिखरा सा पड़ा है ये सामान सारा
थक गई हूँ अब समेटा नहीं जाता।
कोई तो रोक कर मेरे आँसू
ये कह दे
हे प्रिये ! अब तुझ बिन रहा नहीं जाता…!!

Exit mobile version