Site icon Saavan

धर्म के ठेकेदार

कविता-धर्म के ठेकेदार
——————————
इस मुस्कुराहट में
कौन सी जात छुपी है,
चेहरे की कोमलता में
कौन सा धर्म छुपा है,

आज बता दो-
धर्म के ठेकेदारों,
इसके बालों को-
कौन से भगवान ने बनाया है,
खिलखिलाते इसके होठों को देखो,
क्या इस मुस्कुराहट को इंसान ने बनाया है

हाँ! इंसान बना सकता नहीं,
कुरूप को सरूप बना सकता नहीं,
बना सकता है मूरत और मजहब की दीवार,
पर मूरत को जिंदा सूरत बना सकता नहीं,

जब तुम कुछ कर सकते नहीं,
फिर क्यों नौनिहाल बच्चों को,
बेजुबान पंछी को भी
बेजुबान पशुओं को भी
धर्म अधर्म बताया है,
इंसान को इंसान से
घसीट मजहब में बांटा है,

चांद सूरज तारा
पोखर कुआं सरिता का किनारा,
वायु जल आकाश धरा
यह सभी निस्वार्थ है सबके लिए,
आदि समय से मानव हित में रहा,

फिर कौन सा ज्ञान-
हासिल कर लिया,
जब प्रकृति ने नहीं बांटा-
फिर क्यों आपस में बंटवारा कर लिया,
इस बंटवारे के चक्कर में-
इन बच्चों की मुस्कान भी,
जलती मजहबी आग के हवाले कर दिया,

अब हवा नहीं नफरत की बयार बह रही,
अगर भगवान है तो उससे मेरी फरियाद है
क्यों तेरे रहते हर इंसान की मुस्कान जल रही है
———————————————————
कवि ऋषि कुमार ‘प्रभाकर’-
पता खजुरी खुर्द (चैनपुरवा)
कोरांव प्रयागराज उत्तर प्रदेश

Exit mobile version