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धर्म-पथ

ख़ुद को कर्मपथ पे जिवा, धर्मपथ भी निभाना है

धर्मपथ पर चलते हुए, भूलों को राह दिखानी है

अपने तन की पीर भुला, औरन की पीर घटानी है

जिनके अपने भूल चुके, अपना उन्हेँ बनाना है

हार चुके मनों को , जीत की राह दिखानी है

 

नाम, वैभव, वित की चाह भुला, परार्थ की राह अपनानी है

लोग जो तम में बस्ते है, दिल में उनके दीपक की लो जलानी है

नाउम्मीदी से भरे दिलों को, उम्मीद की किरणों से सजाना है

जिन्हें लोग तुछ मान चुके, सम्मान उनका लौटाना है

सबके दिलो में सम्मानता ला, भिन्नता को दफनाना है

 

यह जो मेरा जीवन है , यह कर्मधर्म का जीवन है

यूई कर्मधर्म की राहों को, अब सहर्ष निभाना है

तनमन से अपना इस राह को,

मानवधर्म को नयी ऊँचाई दिलाना है

                                                   …….. यूई

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