मोहब्त का ले सहारा उन्हें पाने की सोची…..
ख़ुद ही बे – सहारा हो गए …..
जिनका अक्श कभी ओझल ना हुआ , नजरों से ….
वही आज इक धुंधला नजारा हो गए ….
जिन सागरों के किनारों पर रुक जाती थी ….
हमारी कश्ती – ए – चाहत ….
आज वहीँ सागर बे – किनारा हो गए …..
पंकजोम ” प्रेम “