Site icon Saavan

नदियों की वेदना

अमृत से भरी नदियां ये सभी,
आंसू का लिए सैलाब क्यों हैं?
बाहर कल कल की नाद तो है,
अंदर वेदना बेआवाज क्यों हैं?
जैसे मन इनका भारी हो!
मन भीतर गहन उदासी हो!
ऐसा लगता तूफा सा हो!
इनका भी कलेजा कटता हो!
हे मौन मगर कुछ कहती है,
अत्याचारों को सहती हैं।
मेला क्यों इन्हें हम करते हैं?
क्यों दर्द को नहीं समझते हैं?
फिर फिर नादानी करते हैं,
मन की आवाज न सुनते हैं।
सोचो जल है तब तो कल है,
यदि स्वच्छ है जल तो जीवन है।
आओ खुद से फिर करें पहल,
ले स्वच्छ इन्हें करने का प्रण।
निमिषा सिंघल

Exit mobile version