नदी के दो किनारों पर मेरी नज़र टिकी थी,
एक छोर पे मैं और दूजे छोर वो खड़ी थी,
समन्दर था लहरें थीं कश्ती थी सामने,
इन सब के मध्य भी मेरी मोहब्बत डटी थी।।
– राही (अंजाना)
नदी के दो किनारों पर मेरी नज़र टिकी थी,
एक छोर पे मैं और दूजे छोर वो खड़ी थी,
समन्दर था लहरें थीं कश्ती थी सामने,
इन सब के मध्य भी मेरी मोहब्बत डटी थी।।
– राही (अंजाना)