एक नन्हा सा पेड़
आज ही अंकुरित हुआ
अब उसपर जिम्मेदारी
बड़ी और भारी है
सारा जीवन उसका
प्रदूषण मे कटेगा
उसकी यही अब
लाचारी है.
हवा पानी और खान पान,
पेड़ पर भी इसका प्रकोप है
फिर भी क्यों नहीं बदलता इंसान,
उठते काले धुँए जैसी उसकी सोच है.
अब तो ज़हरीली हुई हर सांस है,
जलते प्लास्टिक की हर जगह बांस है
उम्मीद बस इतना है कि पेड़ हमारे पास है,
मानवता की अब तो पेड़ ही एक आस है