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न”वो वक़्त रहा न याद है क़िस्सा कोई”

न वो वक़्त रहा न याद है क़िस्सा कोई।
मेरे हिस्से में ही नहीं है मेरा हिस्सा कोई।।
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ये किया है ख़िज़ाँओ ने जहाँ घर अपना।
गुजरे जमानों में था यही गुलिस्ताँ कोई।।
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उनसे कौन पूंछे की क्या मिला खफा होके।
अपनों को छोड़ता है क्या दानिस्ता कोई।।
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छोड़ दिया मेहफिलो में मैंने आना जाना।
कही मिल न जाएँ शख़्स मुझे तुझसा कोई।।
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ख्वाहिशों की ख़ातिर हम परेशां रहे ताउम्र।
पर जाते वक़्त साथ कहाँ गया खित्ता कोई।।
@@@@RK@@@@

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