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नशा ही नशा

किसी को इश्क का नशा,
किसी को रश्क का नशा।
किसी को शय का नशा,
किसी को मय का नशा।
किसी को दौलत का नशा,
किसी को शोहरत का नशा।
किसी को इबादत का नशा,
किसी को शहादत का नशा।
किसी को हिफाज़त का नशा,
किसी को अदावत का नशा।
किसी को शराफ़त का नशा,
किसी को शरारत का नशा।
किसी को नफ़रत का नशा,
किसी को मोहब्बत का नशा।
किसी को गीत का नशा,
किसी को संगीत का नशा।
किसी को ख़ुशी का नशा।
किसी को ख़ामोशी का नशा।
किसी को गम का नशा,
किसी को अहम् का नशा।
किसी को जीत का नशा,
किसी को ज़िद का नशा।
कौन कहता मैं नशे से दूर,
सारी दुनिया है नशे में चूर।
कौन निकला और कौन फँसा,
जिधर देखो बस नशा ही नशा।

देवेश साखरे ‘देव’

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