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नहीं तकदीर में जो मेरे क्यों फिर जुस्तजू करते

गजल : कुमार अरविन्द

नहीं तकदीर में जो मेरे क्यों फिर जुस्तजू करते |
मेरी किस्मत में क्या है वो पता जाकर के यूं करते |

रखी इज्जत हमेशा है जिसने अपना समझकर तो |
उसी इंसान को ऐसे नहीं बे – आबरू करते |

हमें मिलने का मौका तो नही मिल पायेगा जानम |
कभी ख्वाबों में आ जाओ तो जी भर गुफ़्तगू करते |

ज़हर का घूंट पीकर भी बचे यदि तो बचा लेना |
किसी भी हाल में साहब नहीं ‘रिश्तों का खूं करते |

ये दिल का ‘आइना है जो सदा सच ही दिखाता है |
मुखौटे को अलग रखकर जो इसको रूबरू करते |

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