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नाक का नक्कारख़ाना — हास्य

॥ नाक का नक़्क़ारखाना ॥

सोचिए जरा ! क्या होता, अगरचे इन्सान की नाक न होती ?
सर्वप्रथम तो आधी दुनिया अंधी होती
नाक न होती तो भला, चश्मा कहां पिरोती !

नाक न होती तो, ज़नाब ! सभ्रांत् महिलायें कैसे रोती ?
‘वे’ रूमाल से आंख नही……..नाक पौंछती हैं
आंसुओं को गालों पर सुखाकर
लिपिस्टिक को पल्लू से बचाकर
अदा से नाक सुड़कती हैं-—मासूम-सी हिचकी को, बेवज़ह रोकती हैं.

माननीय ब्रम्हाजी भी दो अतिरिक्त छेद डिज़ाईन करने से बच जाते
सीधे–सीधे ‘बरमा’ उठाते, ‘एक और’ गहरा ‘ड्रिल’ बनाते

मुई ! नाक के कारण ही तो नकेल बनी है
मर्दो की बिरादरी — ‘सांड’ से ‘बैल’ बनी है

न नाक होती–न बाल होता, न नाक कटने का बवाल होता
सारी खुशबूयें, इसी नाक को भरमाती हैं
नासपीटीं नाकें : कांटो में उलझाती हैं.

हां, यह सच है कि;
नाक न होती, तो ‘धाक न होती’ , आदमी की ‘साख न होती’
चुप के…..चुप…..चुपके ‘तांक झांक’ न होती
सोचो तो ! कैसा लगता, जब बिना सुड़के ही ‘आंख रोती’…..?

नाक का नक्क्षा भी अज़ीब दिखता है,
‘अंडमान से चेहरे पर, दमन–दीव लिखता है’.

नाक कटने का डर आदमी को सर्वाधिक डराता है,
इसीलिए तो यारों ! वह हर बार नया मुखौटा लगाता है.
नकटे : नाक की तरफ से सदैव निश्चिन्त् रहते हैं,
नाक–वाले आम तौर पर उन्हें ‘जिन्न्’ कहते हैं

देखिए ! मेरी…….आपकी भी, नाक तो सलामत है
ध्यान रखिए, ज़नाब ! नाक इन्सान् की क़ीमती अमानत है.
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