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नारीत्व

अपने कलेजे से लगाकर सदा रखती मुझे,
हर बुरी नज़र से बचाकर लाड करती मुझे,
माँ बापू के बगिया की एक सुंदर कली मैं,
तो पलभर में क्यूं रौंद डाला दरिंदो ने मुझे।।

एक लड़की हूं एक नारी हूं एक औरत हूं, पर
क्यूं बार बार घसीटा जाएगा खंडहर में मुझे,
एक इंसान हूं मैं भी जीने की अधिकारी भी,
हृदय स्पंदनों की ध्वनि से मैं भी जीती हूं पर;
हर बार क्यूं निर्दोष बेमौत मारी जाती है मुझे।।

समाज को नारीत्व की क़दर नही या ख़बर नही,
आखिर हर बार क्यूं मार दिया जाता है मुझे,
धरती सहज नही या समाज अनुकूल नही,
हर बार क्यूं जान देकर इम्तेहान देना पड़ता है मुझे।।

स्वरचित मौलिक रचना
नेहा यादव

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