खेल खेलने को बहुत कुछ जुटाते हैं हम,
कुछ न कुछ सोंच के कुछ तो बनाते हैं हम,
जिंदगी के सागर में नसीब पानी नहीं हमें,
तो मजबूर होके कचरे की नाव चलाते हैं हम।।
राही (अंजाना)
खेल खेलने को बहुत कुछ जुटाते हैं हम,
कुछ न कुछ सोंच के कुछ तो बनाते हैं हम,
जिंदगी के सागर में नसीब पानी नहीं हमें,
तो मजबूर होके कचरे की नाव चलाते हैं हम।।
राही (अंजाना)