छलना ही सीखा जीवन भर
अच्छे कर्म कहाँ कर पाए
जीवित होते पौधों को हम
नेह का नीर कहाँ दे पाए
पीर की चादर तान के हम तो
रातोंरात कवि बन गये
और ना कुछ सीखा जीवन में
केवल हमनें अश्क बहाये…
छलना ही सीखा जीवन भर
अच्छे कर्म कहाँ कर पाए
जीवित होते पौधों को हम
नेह का नीर कहाँ दे पाए
पीर की चादर तान के हम तो
रातोंरात कवि बन गये
और ना कुछ सीखा जीवन में
केवल हमनें अश्क बहाये…