जहां नहीं संतोष मन
छोड़ दीजिए राह,
उलझन की हर वस्तु की
छोड़ दीजिये चाह।
छोड़ दीजिये चाह
साथ में साथ मित्र का
जिसको केवल याद
रहता सौरभ इत्र का।
कहे सतीश जाना,
तुम दिल खोल वहां
नेह प्रेम सम्मान
का खूब स्थान हो जहां।
जहां नहीं संतोष मन
छोड़ दीजिए राह,
उलझन की हर वस्तु की
छोड़ दीजिये चाह।
छोड़ दीजिये चाह
साथ में साथ मित्र का
जिसको केवल याद
रहता सौरभ इत्र का।
कहे सतीश जाना,
तुम दिल खोल वहां
नेह प्रेम सम्मान
का खूब स्थान हो जहां।