नैनों के तटबंध से
बहे अश्रु की धार
मुख तो पट बंद हैं
भीतर घोर अन्धकार
भीतर घोर अंधकार,
कहां से दिया जलाएँ
बैठे-बैठे लुट गए
किसे अब दोष लगाएं??
नैनों के तटबंध से
बहे अश्रु की धार
मुख तो पट बंद हैं
भीतर घोर अन्धकार
भीतर घोर अंधकार,
कहां से दिया जलाएँ
बैठे-बैठे लुट गए
किसे अब दोष लगाएं??