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” नैनों में नमी अच्छी “

मुझे अब ये तिश्नगी अच्छी नहीं लगती

चेहरे पर मेरे मायूसी अच्छी नहीं लगती……

 

तेरे दीदार के लिए तेरी गली आता हूँ

मुझे ये आशिकी अच्छी नहीं लगती…….

 

जब से देखा हैं उस रुख-ए-रौशन को

किसी और की सादगी अच्छी नहीं लगती…..

 

मैं तुम से करता हूँ बे-पनाह मुहब्बत

तेरी ये नाराजगी अच्छी नहीं लगती ……

 

इस सुख़नवर की ख़ास सुल्ताना हो तुम

महफ़िल में तेरी कमी अच्छी नहीं लगती…….

 

सजा रहे हर पल चेहरा मुस्कान से तेरा

पंकजोम को नैनों में नमी अच्छी नहीं लगती ………

 

पंकजोम ” प्रेम “

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