नज़राना क्या दूँ ,दोस्त तेरी दोस्ती का
हक़ अदा कैसे करूँ ,दोस्त तेरी दोस्ती का
कहने को अल्फ़ाज़ कुछ इस तरह है मौजूँ
न छूटे कभी साथ ,दोस्त तेरी दोस्ती का
राजेश’अरमान’
नज़राना क्या दूँ ,दोस्त तेरी दोस्ती का
हक़ अदा कैसे करूँ ,दोस्त तेरी दोस्ती का
कहने को अल्फ़ाज़ कुछ इस तरह है मौजूँ
न छूटे कभी साथ ,दोस्त तेरी दोस्ती का
राजेश’अरमान’