नज़्म Antariksha 5 years ago नज़्म थी तेरी बरसात वाली अब तोह इंतेज़ार में उसी नज़्म का सहारा है फासले बन गए उन नज़दीकियों में अब तोह याद में उसी का ही सहारा है साद में तेरे मै बरबाद हो गया बरसात के इन दिनों में बस कभी आँखें नम हो जाती है