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नज़्म

नज़्म थी तेरी बरसात वाली
अब तोह इंतेज़ार में उसी नज़्म का सहारा है

फासले बन गए उन नज़दीकियों में
अब तोह याद में उसी का ही सहारा है

साद में तेरे मै बरबाद हो गया
बरसात के इन दिनों में बस कभी आँखें नम हो जाती है

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