न तन पर कपड़े न पैरों में चप्पल का होश होता है,
ये बचपन बस अपने आप में मदहोश होता है,
इच्छाओं की दूर तलक कोई चादर नहीं होती,
बस माँ के आँचल में सिमटा हुआ स्वरूप् होता है।।
– राही (अंजाना)
न तन पर कपड़े न पैरों में चप्पल का होश होता है

न तन पर कपड़े न पैरों में चप्पल का होश होता है,
ये बचपन बस अपने आप में मदहोश होता है,
इच्छाओं की दूर तलक कोई चादर नहीं होती,
बस माँ के आँचल में सिमटा हुआ स्वरूप् होता है।।
– राही (अंजाना)