जालिम हमें हमारी दिल की गुमान दे दो।
रखो जमीन अपनी कुछ आसमान दे दो।।
जज़्बात की ये कैंची
मेरे पंख पे चलाके।
पंगु बना न देना
जालिम करीब आके।।
मत छीन जिन्दगानी
ना मौत का सामान दे दो।
रखो जमीन अपनी कुछ आसमान दे दो।।
राही हूँ मैं मस्त मौला
नभ पथ पे चलने वाला।
पिंजरे में बन्द होकर
रोएगा हँसने वाला।।
मांगू मैं तुमसे इतना
मत खान-पान दे दो।
रखो जमीन अपनी कुछ आसमान दे दो।।
जल्लाद था वो अच्छा
जिसने पकड़ के खाया।
मरकर भी देह मेरा
औरों के काम आया।।
“विनयचंद “दो आजादी
कुछ आन -शान दे दो।
रखो जमीन अपनी कुछ आसमान दे दो।।
पं़विनय शास्त्री