( पगली लडकी )
नयनो को अपने चुरा रही थी
जब वह मेरे सामने आयी
भोली प्यारी चेहरे पर
घबडाहट कि थी परछाई
हा हेलो जब बोला मैंने
नयनो से नयन मिला ना पायी
हाल ए दिल को जब पुछा मैं
इशारो से वह मुझको समझाई
एक टक मैं देखता रहा
वह पगली लडकी मेरे दिल को भाई
चोरी चोरी नयनो से अपने
गडती रहती देखने के बहाने
शर्म हया सब समझ में आयी
कुछ बाते मेरे दिल को भाई
ना जाने ये किस बन्धन में
बधने कि पारी आयी
दिल जाने कितने ख्वाब बुनती
रस्मो के बन्धन में जुडने को आयी ।
– कवि महेश गुप्ता जौनपुरी
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