मैं एक नज़्म तेरी आँखों मे सजा कर,
पलकों पे तेरी ख़ुद का पता लिख जाऊंगा.
खुर्दबीन से भी ग़र मैं अब नज़र नहीं आता,
देखो गिरेबाँ अपना.. शायद वहीं मिल जाऊंगा.
मैं एक नज़्म तेरी आँखों मे सजा कर,
पलकों पे तेरी ख़ुद का पता लिख जाऊंगा.
खुर्दबीन से भी ग़र मैं अब नज़र नहीं आता,
देखो गिरेबाँ अपना.. शायद वहीं मिल जाऊंगा.