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पराई

हाँ हूँ मै पराई

 

लो कह दिया मैंने

 

खुद को ही पराई….

 

 

 

सबने जी दुखाया,

 

कहके मुझे पराया,

 

बाबा की बेटी बन,

 

बनके भाई की बहन,

 

निभाए मन से सारे बंधन,

 

फिर भी मुट्ठी भर अन्न

 

पीछे फेंक माँ के आँगन,

 

चुकाने पड़े  सारे क़र्ज़,

 

निभाए सारे जितने थे फ़र्ज़,

 

कर दी मेरी विदाई,

 

कह कह कर मुझे पराई……

 

 

 

आई पिया के देस,

 

बदला ठौर, बदला भेस,

 

तन मन सब वारा,

 

अपनाये नए  संस्कार,

 

परिवार और परंपरा,

 

निभाये सदा

 

ही मान-मर्यादा, 

 

बनी बहू,भाभी,बीवी,

 

फिर भी कहलाई बेटी पराई,परजाई,

 

पराये घर से आई,

 

बनी  मै यहाँ भी पराई…..

 

 

 

कैसा बेदर्द  है ये नसीब,

 

रिश्ते सारे लगते अजीब,

 

किया खुद को समर्पण,

 

माँगा तो सिर्फ अपनापन,

 

हर रिश्ते को प्यार से संजोया,

 

हर मोती को प्रेम माला में पिरोया,

 

हाय रे ये किस्मत का तिरस्कार,

 

बन के रह गयी नातेदार,

 

हूँ सक्षम, स्वावलंबी और सम्मानित,

 

पर जन्मों  से श्रापित,

 

कोई तो सुझाये कोई युक्ति,

 

जो दे जाए मुक्ति

 

परायेपन के बोध से,

 

मै भी जाऊं अपनाई

 

और कभी ना कहलाऊं परायी,

 

परायी,पराई,पराई !!!

 

 -मधुमिता

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