परोपकारी Pt, vinay shastri 'vinaychand' 4 years ago पत्थर का पर्वत होकर भी आखिर पानी सबको देता है। बिना नाक और मूँह के बृक्ष सबको सुरभित वायु देता है।। बिन ईंधन के जलकर सूरज नित्यहि ताप जगत को देता है। ‘विनयचंद ‘परोपकारी बनकर आखिर क्यों न कुछ तुम देता है।।