Site icon Saavan

पहरा

सोंच का समन्दर और भी गहरा होता गया,

मैं जितना लोगों से मिला उतना बहरा होता गया,

भूल गया उठना ख़्वाबों के घने अँधेरे से एक दिन,

मैं जब जागा तो दूर तलक रौशनी का पहरा होता गया,

अंजाने सफर पर मन्ज़िल की तलाश में निकला था जो ‘राही’,

आज सबसे अंजाना मगर जाना पहचाना उसका चेहरा होता गया।।
राही (अंजाना)

Exit mobile version