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पांव भर चुके हैं छालों से

पांव भर चुके हैं छालों से,

है दिल जख्मी पड़ा मलालों से l

 

 

भरी आंखों में बक़रारी है,

जेहन बेचैन है सवालों से l

 

 

दिल में अफसुर्दगी का आलम है,

अश्क चीखते हैं नालों से l

 

 

एक बिजली सी जबसे कौंधी है,

मुझको नफ़रत है इन उजालों से l

 

 

बस इतने ही हम बाकी  बचे है,

जैसे घर भर गया हो जालों से l

 

 

कैसे उस भूख को मिटाएं अब,

जो भूख पैदा हुई निवालों से l

 

 

ऐ दिल! इतना ही बस एहसान कर,

मुझको आज़ाद कर खयालों से l

 

 

तू आज उस आह को रिहाई दे,

जो लब पे बैठी हुई है सालों से ll

 

-Er Anand Sagar Pandey

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