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पापा

पापा इतना सब आप कैसे कर लेते हो?
कैसे असल जिंदगी में हरफनमौला रह लेते हो?
हर काम में परफेक्ट कैसे हो लेते हो

वो चलना सिखाना, वो कंधों पर घुमाना, बचपन में पढ़ाना साथ में क्रिकेट खिलाना, पोलिटिक्स में इंट्रेस्ट जगाना , वो मोबाइल दिलाना, जिंदगी की सीख सिखाना, सही रास्ता दिखाना, गलत रास्तों से बचाना
यूँ रातों में ओढ़ाना कि….रज़ाई का एक लिफ़ाफ़ा सा बन जाता है…
ऐसे ही नहीं कोई पापा बन जाता है

आज इतने साल बाद भी कोई ज्यादा अन्तर नहीं आया
आपके सामने अपने आप को अभी भी वहीं पाया

वो अपने खट्टे मीठे अनुभव बताना, वो सबको हंसाना, मेरे लिए कपड़े पसंद करवाना, वो मम्मी को गुस्सा दिलाना, और बाद में शांत कराना, वो एग्ज़ाम के बाद दिलासा देना, खाना खाते वक्त मौन लेना……….. सब कुछ लगभग पहले जैसा ही है सिवाय ये कि अब आपसे दुलार छिपाया नहीं जाता
ये अक्सर प्रत्यक्ष ही दिख जाता है..
ऐसे ही नहीं कोई पापा बन जाता है

3 साल बाद मुझे इंजीनियर की डिग्री शायद मिल जाए
पर आपकी डिग्री कहीं दिखती ही नहीं
कई कई बार घर में ढूँढा .. पर मिलती ही नहीं

वो डिग्री जिससे आप पंखे कूलर ठीक कर देते हो, वो डिग्री जिससे आप टीवी ठीक कर देते हो, जिससे दिवाली पर दीवारें रंग जाती हैं, जिससे कभी-कभी ईंटें भी रखी जाती हैं, वो डिग्री जिससे आप अस्वस्थ को स्वस्थ बना देते हो, जिससे लोगों के रिश्ते करा देते हो, वो डिग्री जिससे खराब गाड़ी चलने लग जाती है,
….. वो डिग्री जो एक बिजनेस मैन को भी ‘लॉजिक’ दे जाती है
शायद मैं वो डिग्री ना ढूँढ पाऊँ क्यूंकि मात्र एक डिग्री से कोई सीएस, इलेक्ट्रानिक्स , सिविल , मैकेनिकल, बायोलॉजिकल और सोशल इंजीनियर नहीं बन पाता है
ऐसे ही नहीं कोई पापा बन जाता है

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