रोज तोड़ कर मैं फिर बना लेता हूँ,
जोड़ कर कुछ खांचे खिलौने का घर अपना,
रोज खेल कर मैं फिर बहला लेता हूँ,
जोड़ कर कुछ टुकड़े आईने सा मन अपना,
रोज देख कर मैं फिर मिटा लेता हूँ,
जोड़ कर कुछ ख़्वाबों का सपना अपना,
रोज घूम कर मैं फिर लौटा लेता हूँ,
जोड़ कर कुछ पलो का पालना अपना॥
राही (अंजाना)