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प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) Part -4

आरती को ये बात पता नहीं थी कि जो सपने उसने देखे है, वो सब चकना- चूर हो जायेगे। पिछले कुछ सालों से ना ही एक अच्छा सा स्मार्ट फोन था, ना ही पहन के लिए एक अच्छी सुंदर सी कपड़े (Party wear Dress) आदि कुछ भी नहीं था। बस अपने दिल को ये सोच के समझा लेती थी इस महीने नहीं अगले महीने ख़रीददारी कर लूंगी यानि वो अपनों खुशियों का ख्याल न रखते हुए दूसरों का ध्यान रखती थी। वहीं दूसरी ओर गीता आरती से मिलने के लिए बहुत बेताब यानि बैचेन(excitement) थी। क्योंकि गीता ने आरती के बारे में बहुत सुन रखा था, अब गीता ये देखना चाहती थी और उससे मिलना चाहती थी कौन थी वो लड़की जो जफर खान के लिए मरने और हर रोज भावनात्मक रूप से प्रताड़ित रहती करती थी और क्यों ???
जफर खान के साथ जबरदस्ती शादी करना चाहती और देखने में कितनी बुरी थी जो जफर खान को अपनी पत्नी बोलने में शर्म आती थी। ऐसे हजारो सवालो गीता के मन में घेरा बनाए रखे थे। आखरी में आज वो दिन आ ही गया। जिसे गीता की आंखें देखने के लिए तरस गई। जब गीता को पता लगा की आरती अपने पति जफर खान के साथ अपने कमरे में आ गए है तो गीता के कदम खुद को मिलने से नहीं रुक पाये। और दौड़ के आरती के कमरे में पहुँच गई..
जब गीता ने पहली दफे देखा था, तो सुर्ख गुलाब की मानिंद होठों की लाली ने उसे आकर्षित किया था। उसकी बड़ी -2 आँखे और होठों पर प्यारी सी मुस्कान, बालों का जुड़ा डिजाइन बनाया आरती पे बहुत अच्छा लग रहा था उसके सुर्ख गुलाबी गालों पर पड़कर इंद्रधनुषी छटा बिखेर रही थी। वो अपनी बेटी के संग हंसती-खिलखिलाती बातें कर रही थी और गीता उसको देखती रह गई थी। आरती 10-15 मिनट के बाद नफीस खान से मिलने के लिए उसके पास गई। गीता आरती को अपनी खिड़की से जाते हुए देख रही थी दुपट्टा के पल्लू से अपना सिर ढक कर और दो इंच की हाई हील्स पहने सीढ़ियों पे चलती जा रही थी। 10/15 मिनट के बाद आरती अपने कमरे में वापस आ गई।
देखने से ही आप खुद ही अंदाज़ लगा सकते थे कि आरती तो मानो एक सादा (साधारण) सा जीवन व्यतीत कर रही थी। धीरे -2 जैसे समय बढ़ता गया आरती और गीता की दोस्ती भी बढ़ती गई। उन दोनों की दोस्ती इतनी गहरी हो गई थी कि सामने वाले इन्सान भी ये बोले Wawoo दोस्ती हो तो इन की दोस्ती जैसी हो वरना दिखावे की दोस्ती ना हो। पर नफ़ीज़ा खान को इन दोनों की दोस्ती पसंद नहीं आ रही थी वो इन दोनों की दोनों की दोस्ती को लगातार तड़वाने को कोशिश करती जा रही थी। नफ़ीज़ा खान को लगा रहा था उन दोनों की दोस्ती कच्चे-धागे की तरह है जो धागे को हल्का सा खींचने से ही टूट जाएगा लेकिन हमारी दोस्ती वो खुशी है, वो एहसास है, वो विश्वास है जो एक पल में और बस एक नजर में ही हर किसी से नही हो सकती है।
जब से आरती और गीता की दोस्ती हुई थी। दोनों ही अपनी दुनिया में मस्त रहती थी। दोनों एक दूसरे के साथ उठना-बैठना, साथ में खाना – पीना, घंटो लगातार बात करना आदि।
नफ़ीज़ा खान को ये बात खाई जा रही थी कही ये दोनों मिलकर मेरी पोल ना खोल दे। कहते है चोर की दाढ़ी में तिनका (A speck in the beard of a thief) नफ़ीज़ा ने आरती के बारे में गीता के साथ बहुत सारी (निंदा) बुराईयां की और आरती के पास गीता के लिए बहुत बुराईयां (निंदा) की थी। पर वो दोनों अपनी-अपनी जिंदगी की आप बीती अर्थात जिंदगी के उतार-चढ़ाव, दुःख-सुख आदि अपनी-2 बाते करती थी। आरती गीता को अपनी छोटी बहिन मानती थी और बहुत सारा प्यार करती थी।
गीता आरती के लिए बहुत खास पर्सन(very special person) बन गई थी। आरती ने गीता के साथ सब कुछ साझा करना शुरू कर दिया। जैसे एक बड़ी बहिन छोटी बहिन के साथ करती है। उसका ध्यान रखना गीता के दुःख-सुख में हमेशा साथ देने। वैसे गीता आरती से उम्र में बड़ी थी। पर रिश्ते में आरती गीता की बड़ी बहन बनी थी। दोनों एक दूसरे के साथ बहुत खुश थी।
शायद आरती के पति ज़फर खान को भी इन दोनों की दोस्ती ज्यादा पसंद नहीं थी। जफर खान को भी यही डर था, कही गीता मेरी पत्नी के कान ना भर दे, कही मेरे बारे में ना बता दे। जफर खान और नफ़ीज़ा खान दोनों संबंध (Relationship) में थे। पर नफ़ीज़ा और ज़फर खान दोनों एक दूसरे के सामने ऐसे बात करते थे मानो एक- दूसरे के कट्टर दुश्मन हो।

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