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प्यासा समंदर और मैं

मैं प्यासा था,
समंदर में,
दो अंजुली प्यास, खो आया ।
बड़ा आरोप लगा मुझ पर,
मैं अपना आप खो आया ।।

समंदर नें,
उदासी को,
मेरी आंखों में जब देखा ।
उदासी घुल गई उसमें,
मैं पल्लव सा, निखर आया ।।

समंदर को,
शिकायत हो,
तो हो जाये, ये जायज है ।
मगर उनको शिकायत है,
मैं जिनको भूल ना पाया ।।

समंदर तो,
अभी भी है,
किसी की प्यास, का प्यासा ।
मैं सचमुच में ही, घुल जाता,
रहते वक़्त, निकल आया ।।

समंदर की,
कहानी भी,
बड़ी दिलचस्प है, यारों ।
समंदर आज भी, प्यासा,
कई दरिया, निगल आया ।।

Copyright @ नील पदम्
Deepak Kumar Srivastava

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