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*प्रतीक्षा में पिया की*

रात रूपहली रजत छिड़कते,
झिलमिल तारों संग
आ गए चंद्र-किशोर
देख ऐसी छटा अम्बर पर,
किसका मन ना हो विभोर
एकान्त रात्रि, शान्त पवन है,
कुछ शान्त-अशान्त सा,मेरा मन है
रात रूपहली, प्रतीक्षा में पिया की
बैठी थी मैं अकेली
नभ में चांद बादल की,
ओट में आ गया
ऐसा लगा था देख कर,
जैसे वो शरमा गया
कोई अपना मुझे भी,याद आ गया
एक सपना सा खुली आंखों में छा गया..

*****✍️गीता

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