Site icon Saavan

प्रियतम

प्रियतम की बस एक झलक पर
हर आशिक जी जाता है
आंखों की मदहोशी में वह
जाने क्या-क्या पी जाता है
अधखिली कली जब गालों पर
ठहर ठहर मंडराती है
मन के अंतर्द्वंद से मिलकर
आंख खुली शर्माती है
प्रिय का चुंबन लेकर भंवरा
मदमस्त हुआ फिर मचल गया
मेघों के संग घूम रहा मन
कभी गिरा कभी संभल गया
तुम बिन क्यों कटती नहीं
जीवन की अब रात प्रिये
क्या सचमुच तुम में जादू है
कर दो पूरी मुराद प्रिये ।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

Exit mobile version