मन हर्षित तन पुलकित रोम रोम
नैनन से नीर की फुहार जैसे हो रही
भोलीभाली मतवाली राधारानी गली गली
मोहन के नेह में निहाल जैसे हो रही।
बरसी बदरिया तो भीग गयो अंग अंग
नाचे यूं मगन हो मयूर जैसे हो रही
पैजनी के घुंघरू भी नाच रहे संग संग
प्रेम की दीवानी आज सुध बुध खो रही।
मेघ घिरे कारे कारे दमके बिजुरिया तो
लिपटी यूं मीत की बांहों का हार हो रही
लाज से लजाए नैनों से जो मिली अनुमति
अधरों से अधरों की मनुहार हो रही।
वसन के भीतर जो उर्मि समाई थी वो
दहक – दहक अंगार जैसे हो रही।
लिपटी हुई थी ऐसे चंदन से अहि जैसे
रति प्राणवायु में हो बीज जैसे बो रही।
बेसरि से फिसली जो नाभि पे ठहर गई
सावन की बूंद देखो बेईमान हो रही।
बिंदिया माथे की लाज ढोते ढोते थक गई
चांदबाली केशों का घूंघट लेके सो रही।
कंगन कलाई में मगन भए चूड़ियां तो
बिन सहयोग कैसे निसहाय हो रही।
झांझर की अनबन घुंघरू से हो गई तो
सीतापुर में भी अब बरसात हो रही।
Pragya Shukla,sitapur