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प्रेम पुजारी

एक फूल खिला है प्यार का
देखो आज काँटों के बीच।
मुश्किल लगता है पाना
देख रहा हूँ अँखियाँ मीच।।
घूर घूर के देख रही है
आखिर क्यों दुनिया सारी।
‘विनयचंद ‘परवाह करे क्यों
जो हो सच्चा प्रेम पुजारी।।

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