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प्रेम संपत्ति

उनके कदम लड़खड़ाने लगे हैं
जिसने चलना सिखाया था तुझको
अपने कंधों का सहारा देना
जिसने कंधों पर बिठाया था तुझको
तू फंसा हुआ आडंबर में
तू होड़ करें है कमाई की
अपनी सब शौक पुगाता है
कोई फिक्र है मां की दवाई की
जाने कितनी बार पाखंडी यों की
तू चरण धूल सिर लेता है
प्रथम गुरु तो घर में मां है
कभी उनके कदम छू लेता है
वो हंसकर टाल दिया करते थे
तेरी बचपन की नादानी को
यह उम्र भी बचपन जैसी है
तू समझाकर मनमानी को
तुझ पर दुख की ना धूप पड़े
तुझे पाला था प्रेम आश्रय में
कभी उनकी सेवा न करनी पड़े
उन्हें छोड़ आया वृद्ध आश्रम में
रो जाते हैं तेरी बातों से
जब शब्द के बाण चलाता है
जीवन की कड़ी तपस्या का
सब ज्ञान विफल हो जाता है
तु उनको आंख दिखाता है
जिनकी आंखें धुंधला आई है
तू जग की चमक से भ्रमित हुआ
तभी तेरी यह मती चक्र आई है
चुपके से रात में होती है मां
अभी सुनी सिसकियां रातों में
कभी बैठ कर उससे बातें कर
सुन कितना दर्द है बातों मे
संतान नहीं व्यापारी हो
बस लाभ तलाशते रहते हो
जाने कब संपत्ति नाम लिखें
बस इसी ताक में रहते हो
मां बाप तो खुद संपत्ति है
महा ज्ञानी तपस्वी कहते हैं
यह वह निधि है जिसे पाने को
भगवान तरसते रहते हैं

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