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फितरत

फितरत किसी इंसान की
बदलती नहीं जनाब।
चाहे जिंदगी में आ पड़े
कितने भी अजाब।
बचपन की आदतें समाई होती हैं
इस कदर,
बदला यदि खुद को
तो नया इंसान ले जन्म।
बचपन सुधारा जिसने
वही इंसान बन पाया,
वरना संसार में जीना तो
कीड़े मकोड़ों ने भी पाया।
निमिषा सिंघल

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