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फिर किताबों की याद आने लगी…..

जिन्दगी जब जरा घबराने लगी

फिर किताबों की याद आने लगी।

कितना जागा हुआ था रातों का

अब किताबें मुझे सुलाने लगी।

उसकी तस्वीर अचानक निकली

तो वो किताब मुस्कराने लगी।

धूल का रिश्ता था किताबों से

जब उड़ाई, वहीं मंडराने लगी।

फूल सूखा हुआ मिला लेकिन

उसी खुश्बू की महक आने लगी

कुछ किताबें थी जिंदगी जैसी

जरा सा खोला तो कराहने लगी।

थूक से पन्ने कुछ ही पलटे थे

जुबां लफ्जों को गुनगुनाने लगी।

मैली जिल्दों सी जिंदगी अपनी

फटे पन्नों सी याद आने लगी।

———सतीश कसेरा

 

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