बंद आंखों की कोरों पर
ठहरी बूंदें
गोया
पलकों के पीछे
गहराते अंधेरे में क़ैद किरणें
अपनी ही आंच में
पिघलती जा रही हैं धीरे- धीरे
०४.०९.२०२२
बंद आंखों की कोरों पर
ठहरी बूंदें
गोया
पलकों के पीछे
गहराते अंधेरे में क़ैद किरणें
अपनी ही आंच में
पिघलती जा रही हैं धीरे- धीरे
०४.०९.२०२२