बचपन की कागज़ की नाव
जो बारिश के पानी में तैरती थी
जो कई बार तैरते तैरते थक जाती थी
और उसे फिर से सीधा कर पानी में छोड़
देते थे और वो फिर तैरने लगती थी
अब वो कागज़ की नाव बड़ी हो गई है
और हम उसके आगे बहुत ही बौने
अब भी कागज़ की नाव जब भी देखता हूँ
लगता हम सचमुच उसके आगे बहुत है छोटे
जो खुशिया वो अकेले हमें दे जाती थी
आज हर ख़ुशी भी मिलकर ,
उस ख़ुशी के सामने बहुत छोटी है
राजेश’अरमान’