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बचपन

 

जो बेबसी देख रहे हैं हम आज उनके चेहरो में ,
वो ढूंढेंगे दो वक्त की रोटी कूड़े पड़े जो शहरों में !
जात,पात,दुनियादारी उन्हें इन सबसे मतलब क्या,
पेट की आग बुझाने को वो चल पड़ते हैं अंधेरों में !!
शिक्षा,प्यार,खिलौना आदि ये शब्द वो जाने भी कैसे,
जिनकी जिंदगी बीत जाती है इन कूड़ों की ढेरों में !!
जिंदगी उनकी भी सुधरनी चाहिये ये सच तब होगा,
उन्हें अपना बचपन मिल जाये एक नए से सवेरों में !!
@नितेश चौरसिया 
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