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बटुआ

पति के बटुए पर अक्सर ही नज़र टिकाई जाती थी,
पति जो भी कमाये वो पत्नी हाथ कमाई जाती थी,

भूख लगने पर रोटी जो चूल्हे में ही पकाई जाती थी,
चार लोगों को बैठाकर इज्जत से खिलाई जाती थी,

आज मिलता नही समय अपने रिश्ते सम्भालने का,
पहले जमकर के आँगन में चौपाल लगाई जाती थी,

खरीदकर पहने जाते हैं आज तन ढकने को कपड़े,
पहले तो माँ के हाथों ही जर्सी सिलवाई जाती थी।।

राही अंजाना

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