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बदलते रहते हैं ज़ुबा लोग पल दो पल में कई बार

बदलते रहते हैं ज़ुबा लोग पल दो पल में कई बार,
मगर एक चेहरा बदलने में मुकम्मल वक्त लगता है,
छुपाने से छिप जाते हैं राज़ सिरहाने में कई बार,
मगर झूठ से पर्दे उठ जाने में ज़रा सा वक्त लगता है॥

– राही (अंजाना)

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