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बरखा रानी

घिर-घिर आये मेघा लरज-लरज,
घरङ-घरङ खूब गरज-गरज,
प्रेम की मानो करते अरज,
धरती से मिलने की है अद्भुत गरज।

रेशम सी धार चमकीली,
नाचती थिरकती अलबेली
सी,करती धरती से अठखेली,
मानो बचपन की हमजोली ।

बूंदों के मोती,
हर पत्ते पर गिरती,
आगे पीछे हिलती डुलती,
फिर उनपर चिपक कर बैठी।

किया है स्नान आज फूलों ने,
खिल-खिल गयीं आज बूंदों से,
रेशम सी पंखुङी में
बंद कर कुछ मोती क्षण में ।

मीठी-मीठी बरखा की फ़ुहार,
शीतल करती बूंदों की बौछार,
पिऊ-पिऊ पपीहा करे पुकार,
दूर गगन में गूंजे मेघ-मल्हार ।

प्यासी धरती की प्यास बुझाती,
उसकी तङप मिटाती,
नदियों में अमृत भर जाती,
निर्मलता चारों ओर फैलाती।

मुझको को भी नहला ये जाती,
हौले से बूंदें मुझे पुचकारती,
बार-बार यूँ मुझे छेङ-छेङ जाती,
पिया मिलन की आस जगाती।

तन को दे जाती शीतलता,
पर सजन की याद में जिया है जलता,
पल-पल उसको याद है करता,
बादलों की गरज की तर्ज़ पर ये दिल है धङकता।

बरखा रानी क्यों बैरन तुम बन जाती?
मेरे दिल की जलन क्यों तुम ना मिटाती?
जब तुम धरती से मिलने आती
क्यों मेरे पिया को भी ना साथ मे लाती?

फिर हम सब मिलकर मुस्काते,
मिलकर ही भीगते भीगाते,
पानी की ठंडी धार ओढ़ते,
बूंदों को हथेली में जोङते।

अबके जब तुम फिर से आओ,
घने,स्याह बादल भी लाओ,
सबकी जब तुम प्यास बुझाओ,
मेरी एक अरज सुनती जाओ,
मेरे प्रेम की पांति ले जाओ,
पिया को मेरे साथ लिवा लाओ।

नही तो अकेली मै तङपती रह जाऊँगी,
प्रेम-अग्नि में झुलस जाऊँगी,
पिया-पिया करती रो पङूँगी,
बूंदों में तुम्हारी एक सार हो जाऊँगी।

मेरे अंत का लगेगा लांछन तुमपर,
चाहे तुम बरसो इधर उधर,
मेरी प्यास जो बुझाओ अगर,
तो मानूँ तुम्हे सहेली जीवनभर।।

©मधुमिता

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