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बर्दाश्त नहीं होता

तुम्हारे जाने का दर्द क्यों ना हो ए ख़ुशी,

हमसे तो दुखो के जाने का दर्द भी –

बर्दाश्त नहीं होता .

तुम्हारी चुप्पी सहन कैसे हो ए दोस्त,

हमसे तो दुश्मनों का चुप रहना भी-

बर्दाश्त नहीं होता .

तुम्हे जलन थी हमसे,

तुम्हारे जलने का दर्द क्यों ना हो ए महजबीं,

हमसे तो रात के चिराग का जलना भी –

बर्दाश्त नहीं होता .

 

 

 

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