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बस मेरा अधिकार हो

देह में अभिमान की गर्मी पड़ी
आसुंओं के स्रोत सूखे पड़ गये
नैन की झिलमिल सुहानी पुतलियां
आग के ओले गिराती रह गई।
बाजुओं की शक्ति से कमजोर की
कुछ मदद करने की चाहत खो गई
हर खुशी पर बस मेरा अधिकार हो
लूट लेने की सी आदत हो गई।

— डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत उत्तराखंड

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