बादल घिरे हुये हैं नभ में, गरज रहे हैं आज,
बूंदें बरस रही आंगन में, छम छम छम छम बाज।
ऐसे में तन पुलकित होकर, भीतर करता नाच,
बाहर जाने से डरता है, ठंडक की है आंच।
पौधे खुश हैं बहुत दिनों के, बाद नीर मिला है।
तरस गये थे सूख रहे थे, आज पीर मिला है।
पानी है तो जीवन है इस उदक सब सूना है,
पानी से ही धरणी में नव, अँकुर उग पाना है।
——————💐💐—- डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय