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बाबुषा कोहली के साथ एक शाम

बाबुषा कोहली के साथ एक शाम

बात ये 2017 की थी
मैं साहित्य की साइटें खोज रहा था
गूगल को खूब टटोल रहा था
मिली मुझे फिर इसमें सफलता
अच्छी रचनाओं का था उसमें छत्ता
रसास्वाद करते करते
अच्छे लेखकों से मिलते मिलते
बाबुषा कोहली का पेज फिर आया
प्रेम गिलहरी दिल अखरोट
पूरा पढ़ने से रोक न पाया
इच्छा हुई आगे बढ़ने की
उनको शुभकामनाएं देने की
सोचा थोड़ी सी चर्चा भी होगी
बहुत सी बातें सीखने को मिलेगी
तभी वहां उनका नम्बर पाया
व्हाट्सएप्प बधाई संदेश भिजवाया
उत्साह को मेरे मिली उड़ान
इंतज़ार में था मैं निगाहें तान
पर इंतज़ार न ज्यादा करना पड़ा
उधर से मैसेज तुरंत गिर पड़ा
बोली ये अति निजी नंबर है
इसपर न कोई चर्चा होती है
शब्दों में उनके था गुमान
हो गया था मैं तब हैरान
मैंने भी तब उनको सुनाया
नम्बर सार्वजनिक फिर क्यों कराया
आप सम्मान डिज़र्व नहीं करती हैं
मानता हूं, मेरी ही गलती है
यह कहकर मैंने फोन रख दिया
पर तुरन्त ही मेरा फोन बज गया
उधर से एक गुंडा धमकाने लगा
माफीनामा के लिए डराने लगा
उस शाम हमको समझ में आया
नारी सशक्तिकरण की माया।

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